पितृ पक्ष श्राद्ध - Pitru Paksha Shraddh

पितृ पक्ष श्राद्ध - Pitru Paksha Shraddh

हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी माना जाता है। मान्यतानुसार अगर किसी मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण ना किया जाए तो उसे इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती और वह भूत के रूप में इस संसार में ही रह जाता है।  पितृ पक्ष का महत्त्व (Importance of Pitru Paksha)ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों यानि पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए। हिन्दू ज्योतिष के अनुसार भी पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है। पितरों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के काल को पितृ पक्ष श्राद्ध (Pitru Paksha) होते हैं। मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं ताकि वह अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें।  

पितृ पक्ष श्राद्ध (Pitru Paksha Dates)वर्ष 2021 में पितृ पक्ष श्राद्ध की तिथियां निम्न हैं: 

दिनाँक दिन श्राद्ध तिथियाँ

20 सितंबर सोमवार प्रोष्ठपदी / पूर्णिमा का श्राद्ध

21 सितंबर मंगलवार प्रतिपदा का श्राद्ध

22 सितंबर बुधवार द्वितीया का श्राद्ध

23 सितंबर बृहस्पतिवार तृतीया का श्राद्ध

24 सितंबर शुक्रवार चतुर्थी का श्राद्ध

25 सितंबर शनिवार पंचमी का श्राद्ध

27 सितंबर सोमवार षष्ठी का श्राद्ध

28 सितंबर मंगलवार सप्तमी का श्राद्ध

29 सितंबर बुधवार अष्टमी का श्राद्ध

30 सितंबर बृहस्पतिवार नवमी/सौभाग्यवतीनां श्राद्ध

1 अक्तूबर शुक्रवार दशमी का श्राद्ध

2 अक्तूबर शनिवार एकादशी का श्राद्ध

3 अक्तूबर रविवार द्वादशी/सन्यासियों का श्राद्ध, मघा श्राद्ध

4 अक्तूबर सोमवार त्रयोदशी का श्राद्ध

5 अक्तूबर मंगलवार चतुर्दशी का श्राद्ध – चतुर्दशी तिथि के दिन शस्त्र, विष, दुर्घटना से मृतों का श्राद्ध होता है चाहे उनकी मृत्यु किसी अन्य तिथि में हुई हो. यदि चतुर्दशी तिथि में सामान्य मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि में करने का विधान है. अपमृत्यु वालों का श्राद्ध

6 अक्तूबर बुधवार अमावस, अमावस्या का श्राद्ध, सर्वपितृ अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या का श्राद्ध, महालय श्राद्ध, अज्ञात मृत्यु तिथि वालों का श्राद्ध (जिनकी तिथि नहीं पता हो)

श्राद्ध क्या है? (What is Shraddh)ब्रह्म पुराण के अनुसार जो भी वस्तु उचित काल या स्थान पर पितरों के नाम उचित विधि द्वारा ब्राह्मणों को श्रद्धापूर्वक दिया जाए वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध के माध्यम से पितरों को तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है। पिण्ड रूप में पितरों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है। क्यों जरूरी है श्राद्ध देना?मान्यता है कि अगर पितर रुष्ट हो जाए तो मनुष्य को जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पितरों की अशांति के कारण धन हानि और संतान पक्ष से समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। संतान-हीनता के मामलों में ज्योतिषी पितृ दोष को अवश्य देखते हैं। ऐसे लोगों को पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।  क्या दिया जाता है श्राद्ध में? (Facts of Shraddha)श्राद्ध में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्त्व दिया जाता है। साथ ही पुराणों में इस बात का भी जिक्र है कि श्राद्ध का अधिकार केवल योग्य ब्राह्मणों को है। श्राद्ध में तिल और कुशा का सर्वाधिक महत्त्व होता है। श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए। श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है।  श्राद्ध में कौओं का महत्त्व कौए को पितरों का रूप माना जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितर कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं। अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता तो वह रुष्ट हो जाते हैं। इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है। 

किस तारीख में करना चाहिए श्राद्ध? सरल शब्दों में समझा जाए तो श्राद्ध दिवंगत परिजनों को उनकी मृत्यु की तिथि पर श्रद्धापूर्वक याद किया जाना है। अगर किसी परिजन की मृत्यु प्रतिपदा को हुई हो तो उनका श्राद्ध प्रतिपदा के दिन ही किया जाता है। इसी प्रकार अन्य दिनों में भी ऐसा ही किया जाता है। इस विषय में कुछ विशेष मान्यता भी है जो निम्न हैं: * पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन और माता का नवमी के दिन किया जाता है। * जिन परिजनों की अकाल मृत्यु हुई जो यानि किसी दुर्घटना या आत्महत्या के कारण हुई हो उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है।* साधु और संन्यासियों का श्राद्ध द्वाद्वशी के दिन किया जाता है। * जिन पितरों के मरने की तिथि याद नहीं है, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है।  इस दिन को सर्व पितृ श्राद्ध कहा जाता है। 

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