स्त्री आदरणीय है- Importance Of Women In Hinduism in Hindi

स्त्री आदरणीय है- Importance Of Women In Hinduism in Hindi

हिन्दू धर्म में स्त्री को आदरणीय माना जाता है। वेदों और पुराणों में आदि शक्ति को एक नारी का ही रूप माना गया है। मान्यता है कि त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी अपनी शक्तियां इन्हीं देवी से पाते हैं। हिन्दू धर्म दर्शन में नारी के अस्तित्व और उसके महत्व को बेहद विस्तार से समझाया गया है। लेकिन वक्त के साथ हिन्दू धर्म के पाखंडियों और अल्पज्ञानियों ने नारी के अस्तित्व को नहीं समझा। नारी के महत्व को हिन्दू धर्म के प्रमुख तत्वों में शामिल किया गया है। 


क्या है नारी का महत्व (Importance on Women in Hinduism)
यत्र   नार्यस्तु   पूज्यन्ते रमन्ते  तत्र  देवता: ।
यत्रैतास्तु  न  पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया: ।


यानि जहां नारी की पूजा होती है वहां देवताओं का वास होता है। और जहां इनकी पूजा नहीं होती वहां सभी काम निष्फल हो जाते हैं। 


हिन्दू धर्म में कहा गया है कि जहां नारी की पूजा होती है वहां शक्ति का वास होता है। यह संपूर्ण ब्रह्मांड शक्ति के बिना अधूरा है। इसलिए नारी की पूजा होनी ही चाहिए। त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु और शिव भी जब किसी कार्य को सिद्ध नहीं कर पाते तो वह आदि शक्ति का ही ध्यान करते हैं। महिषासुर की कथा से यह सिद्ध होता है कि जिस परम शक्ति और सबसे बड़ी व्यवस्था का जिक्र किया गया है वह देवी भगवती यानि नारी के बेहद करीब या खुद भगवती दुर्गा ही हैं। (हिन्दू धर्म में एक परमेश्वर को सबसे बड़ा माना गया है जो ब्रह्मा, विष्णु और शिव से भी उच्च स्थान पर हैं)। 


नारी की पूजा (Worship of Women)
हिन्दू धर्म में नारी की पूजा का विधान है। नवरात्र के दौरान कन्या पूजन के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। तीर्थ स्थान या किसी पूजा आदि में बिना पत्नी के बैठना पाप समान माना गया है। 


नारी कल्याण के लिए तत्पर हिन्दू धर्म 
हिन्दू धर्म में पत्नी को अर्धांगिनी यानि आधा अंग माना गया है। हिंदू धर्म के त्रिदेवों को भी उनकी पत्नियों के बिना अधूरा माना गया है जैसे विष्णु जी और लक्ष्मी जी, शिवजी और पार्वती जी, ब्रह्मा जी और सरस्वती जी। ऐसी व्यवस्था को लागू कर आम लोगों के दिलों में नारी के प्रति श्रद्धा भाव को जगाए रखने का प्रयास किया गया है। 


बाद के वर्षों में अज्ञानी और पाखंडियों के कारण नारी के महत्व को अवश्य ठेस पहुंची है। कुछ बेबुनियादी प्रथाएं शुरू की गई जिनका वैदिक सनातन धर्म से कोई नाता नहीं है जैसे सती प्रथा, बाल विवाह, दहेज आदि। सती होने की कहानी हिन्दू धर्म ग्रंथों में कहीं नहीं मिलती। बाल विवाह का भी हिन्दू धर्म ग्रंथों में कोई जिक्र नहीं है।

हिन्दू धर्म ग्रंथों में शिव-पार्वती और राम-सीता की कथाएं मिलती हैं जिनमें दहेज का कोई जिक्र नहीं है। हिन्दू सनातन धर्म में तो स्त्रियों के स्वयंवर की कथाएं है यानि पहले स्त्रियां अपने लिए वर खुद पसंद कर सकती थी। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि हिन्दू सनातन धर्म में महिलाओं को सदा आदरणीय माना है लेकिन बाद के वर्षों में पाखंडियों ने स्त्री के महत्व को कमजोर करने में बड़ी भूमिका निभाई। 

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