आदि ग्रंथ एक सिख धार्मिक पुस्तक है। गुरु ग्रंथ साहिब को ही कई लोग आदि ग्रंथ के नाम से जानते हैं। इस ग्रंथ को सिखों के पांचवें गुरु अर्जन द्वारा अमृतसर में सन् 1604 में संकलित किया गया था। इसे ग्रंथ साहिब के नाम से भी जाना जाता है। अंतिम गुरु गोबिन्द सिंह जी से पहले गुरु ग्रंथ साहिब को आदि ग्रंथ के नाम से जाना जाता था।
आदि ग्रंथ का संकलन (History of Adi Granth Sahib)
आदि ग्रंथ सिख गुरुओं के लगभग 6000 भजनों का एक संग्रह है। इस ग्रंथ में हिन्दू और इस्लामी सन्तों के कुछ भक्ति गीतों को भी संग्रहित किया गया है। इसमें भजनों को रागों के अनुसार व्यवस्थित किया गया है। सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिन्द सिंह ने इस ग्रंथ में सन् 1704-1706 के दौरान होली शब्द जोड़े थे। सन् 1708 में गुरू गोबिन्द सिंह ने अपने निधन से पहले आदि ग्रंथ यानि गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों का गुरु माना।
आदि ग्रंथ के नियम (Adi Granth Rules)
आदि ग्रंथ सभी गुरूद्वारों में पूजा की केन्द्रीय वस्तु है। यह धार्मिक तौर तरीकों से गुरुद्वारों में सुबह मूल मंत्र पढ़कर खोली जाती है और रात में लपेट कर रख दी जाती है। विशेष अवसरों पर इसका दो से पंद्रह दिनों तक पढ़ने का आयोजन किया जाता है। गुरु अर्जन देव जी द्वारा संकलित और प्रमाणीकृत की गई आदि ग्रंथ की मूल प्रति आज भी मौजूद है और कतारपुर में संभाल कर रखी गई है।
महत्तवपूर्ण तारीखें (Important Dates)
30 अगस्त 1604 - आदि ग्रंथ का समापन।
1 सितम्बर 1604 - आदि ग्रंथ गुरु अर्जन देव जी द्वारा हरिमंदिर साहिब में पहली बार स्थापित की गई।
20 अक्टूबर 1708 - शाश्वत गुरु के रूप में गुरु ग्रंथ साहिब की स्थापना