मनोकामना पूर्ण करने के लिए ईश्वर की प्रार्थना कैसे करें

मनोकामना पूर्ण करने के लिए ईश्वर की प्रार्थना कैसे करें

कभी-कभी ऐसा होता है कि हम अपनी मेहनत और काबिलियत से मुकाम तक तो पहुंच जाते हैं लेकिन ये काबिलियत कुछ मौकों पर हमारे काम की नहीं रहती। जीवन में ऐसे मौके आते हैं जब उन दुर्घटनाओं पर हमारा जोर नहीं चलता। इन्हें ही शायद आप बुरा दौर कहते होंगे और इंसान की फिदरत ऐसी है कि अपनी खुशियों में वो कभी भगवान को याद नहीं करता लेकिन बुरे समय में सबसे पहले हमे ईश्वर ही याद आते हैं।

लेकिन ये बात आपने भी देखी होगी भगवान इतनी जल्दी सबकी सुनते भी नहीं हैं। अगर आप चाहते हैं कि आपकी पुकार भगवान तक पहुंचे तो आपको प्रार्थना के बारे में एक सही तरीका पता होना चाहिए।

प्रार्थना का मतलब -

अगर आप अपने दिल की बात भगवान से कहते हैं तो उसे ही प्रार्थना कहा जाता है। इसमें व्यक्ति अपने, अपने परिवार या दूसरों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए प्रार्थना करता है। इसके अलावा अगर आप तंत्र, मंत्र, ध्यान, जाप आदि तरीके भी प्रार्थना का एक रूप है। अगर एक इच्छा से जुडी प्रार्थना अगर कई लोग करें तो भगवान इन प्रार्थनाओं को सबसे पहले सुनते हैं और ये प्रार्थनाएं सबसे ज्यादा प्रभावी मानी जाती हैं।

ईश्वर प्रार्थना अनसुनी क्यों कर देता है -

इंसान को लगता है कि मैं भगवान से इतनी प्रार्थना कर रहा हूँ, भगवान सुन क्यों नहीं है। अगर आपको भी ऐसा ही लगता है तो हम इस लेख के जरिये बताते हैं कि कुछ प्रार्थनाएं नाकाम क्यों हो जाती हैं। प्रार्थना बिजनेस और लेन देन की तरह ही हैं, कभी असफल हो सकती हैं।

प्रार्थना इसलिए नाकाम होती है :

  • · अगर आप माता पिता का सम्मान नहीं कर रहे हैं।

  • · प्रार्थना से अगर आपका नुकसान हो रहा है तब भी प्रार्थना पूरी नहीं होती

  • · किसी को हानि पहुँचाने वाली प्रार्थना भी नाकाम होती हैं।

  • · आहार और व्यवहार पर नियंत्रण नहीं करते हैं तब भी प्रार्थना नाकाम होती हैं।

प्रार्थना के नियम -

  • · अगर आप सही तरीकों से प्रार्थना करते हैं तो आपके जीवन में बदलाव आ सकते हैं।

  • · आसानी से बोली जाने वाली प्रार्थना करें। सरल और साफ तरीके से प्रार्थना करें।

  • · शांत वातावरण में प्रार्थना करें।

  • · रात को सोने से पहले प्रार्थना करके सोएं जल्दी स्वीकार होती है।

  • · प्रार्थना को रोज एक ही समय पर करें।

  • · साथ ही दूसरों को नुकसान पहुँचाने के उद्देश्य से प्रार्थना न करें।

  • अपनी प्रार्थना से पहले दूसरों के लिए भी प्रार्थना

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