इस बार देव प्रबोधिनी एकादशी की सही तिथि जाने

Dev Prabodhini Ekadashi kab hai
इस बार देव प्रबोधिनी एकादशी की सही तिथि जाने

तिथि व समय:

व्रत 25-नवम्बर-2020 बुधवार

व्रत पारायण 26-नवम्बर-2020 गुरुवार

तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 25, 2020 को रात्रि 02:42 an

तिथि समाप्त – नवम्बर 26, 2020 को प्रातः 05:10 am

देवप्रबोधिनी एकादशी को देवउठनी एकादशी और देवुत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों अनुसार देवप्रबोधिनी एकादशी एक देवोत्सव है और इस पर्व को उत्सव की तरह मनाया जाता है। सभी लोग इस पर्व को बड़ी आस्था और श्रद्धा से किया करते हैं । इस दिन भगवान विष्णु को चार मास की योग-निद्रा से जगाने हेतु घण्टा, शंख आदि वाद्यों की मांगलिक ध्वनियों के साथ भाववान श्री हरी के विशेष श्लोकों को पढकर जगाना चाहिय ।

भगवन श्री हरी के श्लोक:

उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद उत्तिष्ठ गरुडध्वज ।

उत्तिष्ठ कमलाकान्त त्रैलोक्यं मंगलं कुरु ।।

उत्तिष्ठोत्तिष्ठगोविन्द त्यजनिद्रांजगत्पते।

त्वयिसुप्तेजगन्नाथ जगत् सुप्तमिदंभवेत्॥

उत्तिष्ठोत्तिष्ठवाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे।

हिरण्याक्षप्राणघातिन्त्रैलोक्येमंगलम्कुरु

मातस्समस्तजगतां मधुकैटभारेः

वक्षोविहारिणि मनोहरदिव्यमूर्ते ।

श्रीस्वामिनि श्रितजनप्रियदानशीले

श्रीवेङ्कटेशदयिते तव सुप्रभातम्

तव सुप्रभातमरविन्दलोचने

भवतु प्रसन्नमुखचन्द्रमण्डले ।

विधिशङ्करेन्द्रवनिताभिरर्चिते

वृशशैलनाथदयिते दयानिधे

अत्र्यादिसप्तऋषयस्समुपास्य सन्ध्यां

आकाशसिन्धुकमलानि मनोहराणि ।

आदाय पादयुगमर्चयितुं प्रपन्नाः

शेषाद्रिशेखरविभो तव सुप्रभातम्

एकादशी व्रत हिंदू धर्म बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है । प्रत्येक वर्ष में 24 एकादशी आती हैं मल / अधिक मास में यह 26 हो जाती हैं । आषाढ़ एकादशी को देवशयन के पश्चात चातुर्मास का आरंभ होता है और कार्तिक शुक्ल देवप्रबोधिनी एकादशी पर इसका समापन होता है । एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना चाहिय यह अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो भी एकादशी व्रत का पारायण सूर्योदय के बाद ही होता है।

पुराण के अनुसार श्री हरि-प्रबोधिनी (देवोत्थान) एकादशी का व्रत करने से 1000 अश्वमेघ यज्ञ तथा 100 राजसूय यज्ञों के समान फल की प्राप्ति होती है अतः इस परम पूण्य प्रदान करने वाली एकादशी को विधिवत करना चाहिए इसके पारायण से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और व्रती अन्त में वैकुण्ठ लोक को प्राप्त करता है । इस दिन व्रती जन जो भी जप-तप-दान-होम आदि पूण्य का कार्य करते हैं यह सब अक्षयफल दयाक होते हैं ।

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