कर्णवेध संस्कार- Karnvedh Sanskar

कर्णवेध संस्कार- Karnvedh Sanskar

कर्णवेध संस्कार सनातन (हिन्दू) धर्म संस्कारों में नवां संस्कार है। माना जाता है कि इस विधि से शिशु की शारीरिक व्याधि से रक्षा की जा सकती है। कर्ण वेधन से सुनने की शक्ति भी बढ़ती है और कानों में आभूषण धारण करने से हमारे सौन्दर्य में चार चांद लग जाते हैं।
 

कब किया जाता है कर्णवेधन संस्कार (Timing of Karnvedh Sanskar)

कर्णवेध या कर्णवेधन संस्कार में बच्चों के कानों को छेदने की प्रथा है। वैदिक हिन्दू धर्म के अनुसार बालक या बालिका के छठें, सातवें या ग्यारहवें वर्ष में कर्णवेधन संस्कार कराना चाहिए। लड़कों के दाहिने और लड़कियों के बाएं कान को छेदने की प्रथा प्रचलित है।
 

कर्णवेध संस्कार का महत्व (Importance of Karnvedh Sanskar)

कर्णवेध संस्कार के मुख्य रूप से निम्न फायदे बताएं गए हैं:
* पुरातन हिन्दू धर्म में कर्णवेध रहित मनुष्य को श्राद्ध का अधिकार नहीं होता था।
* मान्यता है कि कर्णवेध संस्कार बच्चों के सुनने की क्षमता को बढ़ाता है।
* कई लोग मानते हैं कि इस संस्कार से हार्निया जैसी बीमारी का भी इलाज होता है।

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